जम्मू और कश्मीर
जम्मू और कश्मीर भारत का सबसे उत्तरी राज्य है । पाकिस्तान इसका उत्तरी इलाका ("शिमाली इलाका") और तथाकथित "आजाद कश्मीर " हिस्सों पर क़ाबिज़ है और चीन ने अक्साई चीन के हिस्से पर कब्ज़ा किया हुआ है (भारत इन कब्ज़ों को ग़ैरक़ानूनी मानता है ) । पाकिस्तान भारतीय जम्मू और कश्मीर को एक विवादित क्षेत्र मनता है । राज्य की राजभाषा उर्दू है ।हिस्से
भारतीय जम्मू और कश्मीर के तीन मुख्य अंचल हैं : जम्मू (हिन्दू बहुल), कश्मीर (मुस्लिम बहुल) और लदाख (बौद्ध बहुल)। ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर है और शीतकालीन राजधानी जम्मू-तवी । कश्मीर प्रदेश को दुनिया का स्वर्ग माना गया है । अधिकांश राज्य हिमालय पर्वत से ढका हुआ है । मुख्य नदियाँ हैं सिन्धु झेलम और चेनाव । यहाँ कई ख़ूबसूरत झील हैं : दल बुलर और नागिन ।अर्थव्यवस्था
पर्यटन जम्मू और कश्मीर की अर्थव्यवस्था का आधार रहा है। गत वर्षो से जारी आतंकवाद ने यहां की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी थी। अब हालात में कुछ सुधार हुआ है। दस्तकारी की चीजें,कालीन,गर्म कपडे तथा केसर आदि मूल्यवान मसालों का भी यहां की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान है।इतिहास
प्राचीनकाल में कश्मीर (महर्षि कश्यप के नाम पर) हिन्दू और बौद्ध संस्कृतियों का पालना रहा है । मध्ययुग में मुस्लिम आक्रान्ता कश्मीर पर क़ाबिज़ हो गये । कुछ मुसलमान शाह और राज्यपाल हिन्दुओं से अच्छा वयवहार करते थे पर कई ने वहाँ के मूल कश्मीरी हिन्दुओं को मुसलमान बनने पर, या राज्य छोड़ने पर या मरने पर मजबूर कर दिया । कुछ सदियों में कश्मीर घाटी में मुस्लिम बहुमत हो गया ।
आज़ादी के समय कश्मीर में पाकिस्तान ने घुसपैठ करके कश्मीर के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया । बचा हिस्सा भारतीय राज्य जम्मू-कश्मीर का अंग बना । हिन्दू और मुस्लिम संगठनों ने साम्पदायिक गठबंधन बनाने शुरु किये । साम्प्रदायिक दंगे 1931 (और उससे पहले से) से होते आ रहे थे ।नेशनल कांफ्रेंस जैसी पार्टियों ने राज्य में मुस्लिम प्रतिनिधित्व पर ज़ोर दिया और उन्होंने जम्मू और लदाख क्षेत्रों की अनदेखी की । स्वतंत्रता के पाँच साल बाद जनसंघ से जुड़े संगठन प्रजा परिषद् ने उस समय के नेता शेख अब्दुल्ला की आलोचना की । शेख अब्दुल्ला ने अपने एक भाषण में कहा कि "प्रजा परिषद भारत में एक धार्मिक शासन लाना चाहता है जहाँ मुस्लमानों के धार्मिक हित कुचल दिये जाएंगे ।" उन्होने अपने भाषण में यह भी कहा कि यदि जम्मू के लोग एक अलग डोगरा राज्य चाहते हैं तो वे कश्मीरियों की तरफ़ से यह कह सकते हैं कि उन्हें इसपर कोई ऐतराज नहीं ।
जमात-ए-इस्लामी के राजनैतिक टक्कर लेने के लिए शेख अब्दुल्ला ने खुद को मुस्लिमों के हितैषी के रूप में अपनी छवि बनाई। उन्होंने जमात-ए-इस्लामी पर यह आरोप लगाया कि उसने जनता पार्टी के साथ गठबंधन बनाया है जिसके हाथ अभी भी मुस्लिमों के खून से रंगे हैं । 1977 से कश्मीर और जम्मू के बीच दूरी बढ़ती गई ।
1983 के चुनावों से लोगों - खासकर राजनेताओं - को ये सीख मिली कि मुस्लिम वोट एक बड़ी कुञ्जी है । प्रधानमंत्री इंद्रा गाँधी के जम्मू दौरों के बाद फ़ारुख़ अब्दुल्ला तथा उनके नए साथी मौलवी मोहम्मद फ़ारुख़ (मीरवाइज़ उमर फ़ारुख़ के पिता) ने कश्मीर में खुद को मुस्लिम नेता बताने की छवि बनाई । मार्च 1987 में स्थिति यहाँ तक आ गई कि श्रीनगर में हुई एक रैली में मुस्लिम यूनाटेड फ्रंट ने ये घोषणा की कि कश्मीर की मुस्लिम पहचान एक धर्मनिरपेक्ष देश में बची नहीं रह सकती । इधर जम्मू के लोगों ने भी एक क्षेत्रवाद को धार्मिक रूप देने का काम आरंभ किया । इसके बाद से राज्य में इस्लामिक जिहाद तथा साम्प्रदायिक हिंसा में कई लोग मारे जा चुके हैं ।
जिले
क्यों इस को देख कर हमें दर्द होता है कब तक इस तरह इस प्यारे से हिस्से को लेकर लोगो मई खून की होलियाँ होती रहेंगी कब तक आख़िर कब तक